पैरों में लकवा मार जाने का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Remedies For Loco-Motor Ataxia (Tabes Dorsalis) ]

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जब रोगी के पैर ठीक से नहीं पड़ते और वह लड़खड़ाता-सा पैरों को घसीटता-सा चलता है, तो यह स्नायु-संस्थान का रोग होता है और ऐसा मेरुमज्जा की क्षीणता के कारण भी होता है। त्वचा के होने की अनुभूति नहीं रहती, सुन्नपन हो जाता है। इस अवस्था में धीरे-धीरे बढ़ कर पक्षाघात हो जाता है।

बेलाडोना 30 — पैरों के पक्षाघात में जब दर्द के लक्षण प्रकट हों, तब यह औषधि उपयोगी है।

काक्युलस 6 — जब पीठ के नीचे का हिस्सा प्रभावित हो, कमर में शक्ति न रहे और पक्षाघात जैसा लगे, चलते हुए टांगें जवाब दे जाएं, घुटने काम न करें, तब इस औषधि का प्रयोग करें।

कॉस्टिकम 30 — पैरों के पक्षाघात में यदि रोगी को चक्कर आता हो, तब यह औषधि दें।

कैलि ब्रोम 3x — रोगी अपनी टांगों का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं कर सकता; रीढ़ और टांगों में सुन्नपने अनुभव होता है, पैरों में झनझनाहट होती है।

नक्सवोमिका 30 — इस औषधि के पैरों के पक्षाघात में कमर में दर्द होता है; पैरों में चलने-फिरने की शक्ति नहीं रहती और उनमें सुन्नपन रहता है।

फास्फोरस 200 — पैरों के पक्षाघात में जब रीढ़ में ऊपर से नीचे तक जलन महसूस हो, तब यह उपयोगी है।

पिकरिक एसिड 6x — रीढ़ के विकार के कारण जब पैरों में पक्षाघात का रोग हो जाए, तब यह औषधि उस दशा में उपयोगी सिद्ध होती है।

साइलीशिया 30, 200 — रीढ़ के स्नायविक-तंतुओं तथा हाथ-पैरों पर इस औषधि का विशेष प्रभाव है। रोगी को कमर-दर्द होता है, टांगें कांपने लगती हैं, उनमें शक्ति नहीं रहती।

एलूमिना 6 — रोगी लड़खड़ाकर चलने की कोशिश करता है। पीठ में तथा टांगों में कौड़ियों के चलने का-सा अनुभव होता है, कमर में तेज दर्द होता है, पैर काम करना बंद कर देते हैं।

जेलसिमियम 30 — इस औषधि का प्रभाव-क्षेत्र स्नायु-संस्थान पर है और भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षाघातों में यह उपयोगी है।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 6 — पैरों के पक्षाघात में होम्योपैथ के साथ-साथ ऐलोपैथ डॉक्टर तक इस औषधि का प्रचुरता से प्रयोग करते हैं।

रस-टॉक्स 30 — जिस अंग में (हाथ-पैर में चलने-फिरने की क्षमता नहीं रहती, वहां सुन्नपन हो जाता है, चीटियां-सी रेंगती हैं। यह पक्षाघात के आरंभ का सामान्य लक्षण है। इस लक्षण में यह औषधि बहुत अच्छा काम करती है।

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