मस्तिष्क का पक्षाघात “संन्यास रोग” का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Treatment For Brain Stroke ]

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मस्तिष्क के भीतर कोई धमनी (आर्टरी) टूटकर रक्तस्राव होने को “संन्यास-रोग” कहते हैं। यह रक्तस्राव मस्तिष्क-पदार्थ के ऊपर या मस्तिष्क-गह्वर में होता है; किंतु अधिकतर मेनिन्जियल-आर्टरी ही टूट जाती है और उससे रक्तस्राव होता है। वृद्धावस्था में 50 वर्ष के ऊपर मस्तिष्क की आर्टरी में ऐसा परिवर्तन हो जाता है कि वे सहज में ही फट सकती हैं। हृदय के वेंट्रिकल के किसी रोग से भी इस रोग के आक्रमण होने की संभावना होती है। चोट के लगने से अथवा किसी रोग के कारण से मस्तिष्क-आधार की दुर्बलता से, मस्तिष्क-पदार्थ के किसी भी प्राथमिक रोग से आक्रांत व्यक्ति को तथा एपोप्लेकिक हैबिट अर्थात खूब बलवान व्यक्ति को जिनका भार स्वाभाविक की अपेक्षा बहुत अधिक है, वक्षस्थल चौड़ा और मस्तक बड़ा है, मुंह गोल, गरदन छोटी और स्थूल है, उन्हीं को यह रोग अधिक होता है। इसके अतिरिक्त जिनकी मस्तिष्क-प्राचीर किसी रोग के कारण कमजोर हो जाती है, उनके मस्तिष्क में किसी पीड़ा या रोग के कारण एकाएक ब्लड-प्रेशर (रक्त का दबाव बढ़ जाने से फटकर रक्तस्त्राव हो सकता है।

पहले जब मस्तिष्क में रक्त-संचय होता है, उस समय रोगी को बोलने में कष्ट होता है तथा सिर में दर्द, चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, शरीर का एक पार्श्व सुन्न हो जाना, किसी अंग में दर्द, पेशी की कमजोरी, नाक से सामयिक रक्तस्राव इत्यादि कितने ही लक्षण प्रकट होते हैं। मस्तिष्क में जिस तरफ पक्षाघात होता है, उसके विपरीत ओर ही शरीर का पक्षाघात प्रकट होता है। डॉ. ट्रॉसो का कहना है कि यदि हाथ का पक्षाघात पहले आरोग्य होने लगे, तो निश्चय ही रोगी का अंत हो जाएगा, यह कुलक्षण है। इस रोग में यदि रोग का भोग अल्पकाल स्थायी हो, तो समझ लें कि रोगी जल्द ही मर जाएगा। यदि रोगी की एकाएक मृत्यु न हो, तो वह बहुत दिनों तक भोगेगा। इस अवस्था में रोगी को यदि ज्वर आ जाए तो समझना होगा कि मस्तिष्क का नया प्रदाह और रक्तस्राव (हेमरेज) होने का उपक्रम हो रहा है। यह प्रदाह अत्यंत भयावह है, किंतु यदि उपसर्ग धीरे-धीरे घटते जाएं, तो आरोग्य की आशा रहती है। किंतु मस्तिष्क से अधिक परिमाण में रक्तस्राव हो, तो मस्तिष्क का पक्षाघात हो जाता है।

उपरोक्त लक्षण यदि रोग प्रकट होने के पहले ही समझ में आ जाएं, तो उसी समय से सब काम-काज छोड़कर ऐसा प्रबंध करना चाहिए, जिसमें रोगी को संपूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम प्राप्त हो। इस समय किसी प्रकार की चिंता, कष्ट, शोक और दुख रोगी को न होने पाए, इसका उपाय करना और हल्का, पुष्टिकर आहार का प्रबंध करना आवश्यक है। किसी प्रकार का नशा करना या नशीले और उत्तेजक पदार्थों का सेवन एकदम त्याग देना चाहिए। इस रोग में उपचार करके प्रायः सफलता नहीं मिलती। औषध का प्रयोग करके यदि शीघ्रता से रक्त का शोषण कर मस्तिष्क का दवाब दूर न किया जा सका, तो पक्षाघात (लकवा) हो जाता है और पक्षाघात कुछ दिन बना रहे, तो दुरारोग्य हो जाता है।

आर्निका 3x, 6 — यह रक्त-शोषण की बहुत उत्तम औषधि है। ज्वर रहने पर इसके साथ पर्याय-क्रम से एकोनाइट देनी चाहिए। आर्निका से लाभ न हो और क्रॉनिक (पुराना) रोग हो तो सल्फर देनी चाहिए। इससे भी लाभ न हो, तो बैराइटी कार्ब या साइलीशिया प्रयोग करें।

एकोनाइट 30 — अंगों का सुन्न हो जाना, झुरझुरानी, नाड़ी का पूर्ण वेग से चलनी, मन की तथा शरीर की बेचैनी। आक्रमण के समय 15-20 मिनट बाद इसे दें।

बेलाडोना 30 — मस्तिष्क की नस फट जाने से मस्तिष्क के भीतर जो रक्तस्राव होता है, उससे मस्तिष्क की क्रिया बंद हो जाती है, इस अवस्था में यदि शरीर के किसी भाग का या सारे शरीर का पक्षाघात हो जाए, तो आक्रमण की अवस्था में बेलाडोना 6 या 30 को 15 से 30 मिनट के भीतर बार-बार देने से आश्चर्यजनक लाभ होता है। बेलाडोना में चेहरा लाल हो जाता है, नाड़ी तेज हो जाती है, पुतलियां फैल जाती हैं।

ओपियम 30 — जब बेलाडोना से रोगी चैतन्य हो जाए, तब यदि फिर से चेतनावस्था लुप्त होने लगे और रोगी इस संज्ञा-शून्यता में घुरघुराने लगे, तब ओपियम देनी चाहिए। इसके बाद फिर बेलाडोना पर आ जाना चाहिए। संन्यास-रोग में प्रायः संज्ञा-शून्यता और घुरघुराहट का श्वास आने लगता है। इस अवस्था में ओपियम मुख्य औषधि है। ऐसी अवस्था में इसे 30 शक्ति में दिन में 3 बार देते रहने से लाभ होने की संभावना रहती है।

नक्सवोमिका 6, 30 — यह औषधि ओपियम की पूरक का काम करती है। और उसके द्वारा नीरोगता को सहायता देती है। डॉ. क्लार्क के अनुसार यदि इस रोग के आरंभ में रोगी को घुमेरी आती हो, सिरदर्द हो, सिर भारी हो, रुधिर की नाड़ियां भरी तथा उभरी दिखाई दें, तब नक्स वोमिका देनी चाहिए।

इग्नेशिया 200 — यदि चोट लगने के कारण संन्यास-रोग (एपोप्लैक्सी) हुआ हो; शोक, दुख, चिंता या मानसिक आघात के कारण कष्ट हुआ हो, तब यह अधिक उपयोगी है।

नैट्रम कार्ब 6 — सूर्य की या गैस की गर्मी के कारण रोग होने पर दें।

ग्लोनॉयन 6, 30 — ब्लड-प्रेशर के कारण रोग हुआ हो। बहुत तेज सिरदर्द जो गरदन से आरंभ हो। नाड़ियों का स्पंदन; जाने-पहचाने रास्ते भी अजनबी लगते हैं, रोगी कुछ पहचान ही नहीं पाता है, तब इससे लाभ होता है। नित्य 4 बार दें।

बैराइटा कार्ब 3, 30 — वृद्ध व्यक्तियों में एपोप्लैक्सी की आशंका या प्रवृत्ति होने पर यह औषधि दी जानी चाहिए।

एसिड हाइड्रो, लॉरोसिरेसस — (औषध-शक्ति रोगानुसार) रोग का एकाएक आरंभ होना, त्वचा ठंडी रहना, नाड़ी लापता, श्वासकृच्छ्रता, गला घड़घड़ना, उदर फूलना, बेहोशी आदि।

पुरानी अवस्था में — काक्युलस, कॉस्टिकम, क्रूपममेट, प्लम्बम आदि।

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