सिम्पल मेनिनजाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Treatment For Simple Meningitis ]

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सिम्पल मेनिनजाइटस के अवस्था भेद से लक्षण इस प्रकार हैं : प्रथमावस्थापहले जाड़ा लगकर ज्वर चढ़ता है (103 से 104 डिग्री), अकड़न हो जाती है, सिर में बहुत तेज दर्द होता है, रोगी चिल्ला पड़ता है; उसे आवाज और रोशनी सहन नहीं होती; नाड़ी तेज और कड़ी रहती है, आंखें लाल, प्रलाप बकना, बेचैनी, मुंह की पेशियों का कांपना, चक्कर आना, पुतलियों का फैल जाना; गरदन की मांसपेशियों में खिंचाव, हाथ-पैरों में कंपन, जिह्वा मैली, वमन और कब्ज आदि लक्षण रहते हैं। यह अवस्था 1 से 15 दिनों तक रह सकती है। द्वितीयावस्था-रोगी का ज्ञान लोप हो जाता है,

नाड़ी की गति असमान, धीर और सविराम हो जाती है, आंखों की पुतलियां फैली रहती हैं, आंखें अधमुंदी अवस्था में रहती हैं; रोगी दांत किटकिटाता है, श्वास-प्रश्वास अनियमित और धीमा हो जाता है। रोगी बड़े कष्ट से श्वास छोड़ता है। तृतीयावस्था-रोगी मानो कोमा में चला जाता है, आंखों की पुतलियां बहुत बड़ी हो जाती हैं, अनजाने में मल-मूत्र होता है, समूचे शरीर में ठंडा पसीना आता है, चेहरा विकृत दिखलाई देता है, होंठ और जिह्वा पर मैल जम जाता है, गरदन की पेशियां खिंची रहती हैं और कड़ी हो जाती हैं।

नाड़ी पहले कड़ी और तेज, कभी-कभी धीमी और असमान होती है, इतने पर भी नाड़ी की गति सविराम होती है। तृतीयावस्था में रोगी की मृत्यु निश्चित जाननी चाहिए। मृत्यु से पहले ज्वर एकाएक पहुत अधिक हो जाता है (106 डिग्री तक), फिर यकायक उतरकर 97 डिग्री या स्वाभाविक हो जाता है, नाड़ी सूत की तरह महीन और शरीर ठंडा हो जाता है। इसके बाद ही मृत्यु होती है। सिम्पल मेनिनजाइटिस की औषधियां निम्नलिखित हैं —

आर्निका 30, 1M — यदि मस्तिष्क पर चोटादि लगने से रोग की उत्पत्ति हुई है, तो हर दो-दो घंटे के अंतर से यह औषधि देनी चाहिए। यह उच्च-शक्ति में अधिक लाभ करती है।

एकोनाइट 3, 6 — यदि रोग का कारण चोट नहीं है, तो रोग के आरंभ में ज्वर आने पर सिरदर्द, बेचैनी, घबराहट, अधिक प्यास, त्वचा के खुश्क हो जाने पर यह औषधि देनी चाहिए।

बेलाडोना 30, 200 — यदि रोगी बिस्तर से उठकर भागने की कोशिश करे, रेज ज्वर के साथ चेहरा तमतमाया हो, आंखों की पुतलियां फैल जाएं, तब यह औषधि दें और इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जब आवरक-झिल्ली की सूजन (प्रदाह) में झिल्ली में से स्राव निकलना आरंभ हो जाए, तब इस औषधि से कोई लाभ नहीं होता। इसका प्रभाव स्राव निकलने से पहले तक का है। आवरक-झिल्ली में साव जारी होने के बाद ब्रायोनिया को देना चाहिए।

ब्रासोनिया 30 — मस्तिष्क की आवरक-झिल्ली में से स्राव होने लगे और फिर मस्तिष्क में स्राव जमा हो जाने के कारण उसके दबाव से रोगी औंघाई में जड़वत् पड़ जाता है, चेहरे पर एकदम आई चमक उठती है और उसके बाद चेहरा पीला पड़ जाता है ये शुभ लक्षण नहीं हैं। फिर भी यह औषधि दी जानी चाहिए। इस रोग की यह उत्तम औषधि मानी जाती है।

एपिस 30 — इस रोग में इस औषधि का सबसे बड़ा लक्षण सोते में चीख पड़ना है। यदि रोगी सोते में चीख पड़ता हो, तब इसे दें।

कौक्कुलम 3, 30 — यदि रोगी अपने कहे को उसी समय भूल जाए, तब यह औषधि देना आवश्यक हो जाता है।

सल्फर 30 — जब एपिस देने के बाद भी रोगी में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती, तब यह औषधि दी जाती है। रोगी बेहोशी-सी में पड़ा रहता है-तंद्रा में, माथे पर ठंडा पसीना आता है, अंगों में कंपन होता है, विशेषकर टांगें कांपती हैं। यदि यह जानकारी हो कि रोगी को किसी रोग में दाने दब जाने के बाद यह कष्ट हुआ है, तब निश्चित होकर यह औषधि दें।

जिंकम मेट 6 — रोगी बच्चा भय से जाग उठता है, बिना उठे और बिना जाने सोते हुए भी चीख मारता है, निद्रा में पैर हिलाता रहता है। प्रायः दानों के दब जाने से मस्तिष्क में चिड़चिड़ाहट हो जाती है, जिससे सोते हुए चीख उठना, पैरों को हिलाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

विशेष — मस्तिष्क में चोट लगने से या मेनिनजोकोक्कस नामक जीवाणु के कारण (यह जीवाणु नाक के रास्ते मस्तिष्क तक चला जाता है) ज्वर, शरीर पर छोटी-छोटी फुसियां हो जाती हैं और गले की पेशियां अकड़ जाती हैं।

साइक्यूटी 30, 200 — अकड़न, ऐंठन, अंग-विक्षेप, किसी अंग विशेष में या सारे शरीर में ऐंठन हो सकती है; सिर या गरदन पीठ की तरफ मुड़ते हैं। पीठ भी धनुष की तरह पीछे को मुड़ जाती है। स्पर्श और शोर आदि से कष्ट की वृद्धि हो जाती है।

जेलसिमियम 30 — शक्तिहीनता, अंगों का कंपन अथवा अंगों का सुन्न पड़ जाना आदि लक्षणों में देनी चाहिए।

क्रोटेलस 3 — यदि ज्वर हो जाए, रक्त के दूषित होने पर लक्षण दिखने लगे, तब यह औषधि देनी चाहिए।

नोट — इस रोग में, बीच-बीच में रोगी कुछ स्वस्थ होता-सा दिखाई देता है, इससे मालूम होता है कि वह आरोग्य हो रहा है, पर पहले समान फिर उपसर्ग बढ़ने लगते हैं। अज्ञानाभाव क्रमशः बढ़ जाता है, पक्षाघात, आंख की पुतली फैली, बहुत अधिक उच्च ज्वर-ये लक्षण मृत्यु के पूर्व चिन्ह हैं।

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