Manduki Mudra Method and Benefits In Hindi

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माण्डुकी मुद्रा

मुखं संमुदितं कृत्वा जिह्वामूलं प्रचालयेत्।
शनैर्ग्रसेदमृतं तां माण्डुकीं मुद्रिकां विदुः॥
वलितंपलितं नैव जायते नित्य यौवनम्।
न केशे जायते पाको यः कुर्यान्नित्यमाण्डुकीम्॥
(घे.सं. 3/74-75)

विधि

मुख को बंद कर जीभ को तालू में घुमाना चाहिए और सहस्रार से टपकते हुए अमृत का जिव्हा से पान करना चाहिए। यह माण्डुकी मुद्रा है।
भद्रासन में बैठ जाएँ (पृष्ठ 215 देखें) । हाथों को घुटनों पर रखें। यथाशक्ति नितम्बों को ज़मीन पर टिकाएँ। मेरुदण्ड, गर्दन व सिर सीधा रखें। मुख बंद करें। अब अंदर ही अंदर जिव्हा को ऊपर तालू में दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे घुमाएँ। इस प्रकार की क्रिया करने से ग्रंथि स्त्राव होता है। ऋषि कहते हैं कि यही अमृत है। इसके पान से बुढ़ापा पास नहीं आता। शरीर कांतिवान रहता है, अतः साधक को नित्य अभ्यास करना चाहिए।
विशेष: इस मुद्रा को करते समय सहस्त्रार पर ध्यान एकाग्र कर आत्मिक आनंद का लाभ उठाना चाहिए।

लाभ

  • बालों का झड़ना एवं असमय पकना बंद होता है।
  • स्थायी यौवन की प्राप्ति होती है।
  • शरीर कांतिवान बनता है व समस्त रोगों का नाश होता है।
  • यह मुद्रा शरीर में वात-पित्त-कफ़ का संतुलन स्थापित करती है।

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