Manipura Chakra Method and Benefits In Hindi

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मणिपूरक चक्र

शरीर के केंद्र स्थल-नाभि मूल में स्थित यह अग्नि तत्व चक्र दश कमल दल युक्त होता है। स्वर्ण रंग की दसों पंखुड़ियों पर क्रमशः डं, ढ, णं, तं, यं, दं, धं, नं, पं, फं लिखा हुआ है। इस पद्म के अंदर लाल रंग से रंजित उल्टा त्रिभुज है। जिस पर बीज मंत्र रं लिखा है। इसका बीज वाहन भेड़ (मेढ़ा) है। इसके प्रमुख देवता रुद्र हैं और शक्ति देवी लाकिनी है।
यह चक्र मणि की भांति चमकदार है। अग्नि का केंद्र है। यह आत्मिक और भौतिक शरीर का प्राण केंद्र है तथा चैतन्यता और शक्ति से प्रदीप्त है तथा रुद्र ग्रंथि का निवास स्थान है। यह सूर्य का (ताप) केंद्र है। जिस कारण व्यक्ति की जीवन रक्षा होती है।
14 से 21 साल की आयु मणिपूरक चक्र से प्रभावित रहती है। इससे प्रभावित व्यक्ति प्रसिद्धि, यश तथा नाम की प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है।
चूंकि यह सूर्य का केंद्र है अतः यह हमारे उदर-प्रदेश से सम्बंधित अंगों का सुचारु रूप से संचालन करता है। चक्र के विकार ग्रस्त हो जाने से पाचन-तंत्र से सम्बंधित रोग होते हैं। रक्त-विकार, हृदय-विकार तथा मानसिक विकार उत्पन्न होता है। शरीर आलस्य, सुस्ती और निराशा से भर जाता है। अतः मणिपूरक चक्र का ध्यान कर उपरोक्त रोगों से बचा जा सकता है एवं इस चक्र का ध्यान करने से कई अन्य लाभ भी प्राप्त किए जा सकते हैं। जैसे मधुमेह नहीं होता, पाचन-तंत्र, डायफ्रॉम, बड़ी आँत, छोटी आँत एवं सम्पूर्ण उदर-प्रदेश को लाभ मिलता है। आध्यात्मिक लाभ के रूप में व्यक्ति अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, क्षमा आदि धारण कर उत्तरोत्तर प्रगति करता है।

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