चेचक के टीके के उपसर्ग [ Side Effects Of Vaccinations In Hindi ]

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ऐलोपैथिक चिकित्सा के मत से टीका (Vaccination) लेना – साधारणतः बांह छेदकर चेचक का बीज (लिक्विड फॉर्म में) शरीर में डाल दिया जाता है, किंतु आजकल होम्योपैथिक चिकित्सक वैक्सिनिनम, वैरियोलिनम या मैलेंड्रोनम खिलाकर टीका देने की प्रक्रिया करते हैं। हाथ में छेदकर टीका देने पर जो लाभ होता है, वैरियोलिनम आदि औषधियां खिलाने पर वही लाभ होता है। इतना अवश्य होता है कि पहले ढंग से टीका देने के कारण जो हानियां होती थीं, वह इससे नहीं होतीं।

वैक्सिनिनम 30, वैरियोलिनम 30 या मैलेंड्रोनम 30 – नित्य दो बार लगभग दो सप्ताह तक सेवन करनी चाहिए। ये औषधियां सेवन करने के कारण, जब तक ज्वर न हो या किसी प्रकार का रोग न हो, तब तक समझना चाहिए कि इस औषधि ने अपना काम नहीं किया और अभी टीका नहीं लगा है। विद्वान होम्योपैथ का मत है कि वैक्सिनिनम 3x चूर्ण एक मात्रा सेवन करने से ही टीके का काम हो जाता है और टीका देने से जो हानि की संभावना रहती है, वह नहीं होती। निम्नलिखित औषधियों पर भी विचार करें –

एकोनाइट 30 – यदि टीके के बाद ज्वर आ जाए।

एपिस 30 – यदि टीके के बाद बहुत अधिक सूजन आ जाए।

बेलाडोना 30 – यदि टीके के बाद बड़े-बड़े लाल-लाल छाले पड़ जाएं और आस-पास की त्वचा का रंग भी बहुत लाल हो जाए, तब प्रयोग करें।

मर्क सोल 30 – यदि टीके में पस पड़ जाए, तो इसे दें।

सल्फर 30 – टीके के ठीक होते समय यदि उसमें बार-बार खुजली हों।

वैक्सिनिनम 30 – (हर तीसरे घंटे दें) यदि टीके के बाद विपर्स-रोग हो जाए।

चेचक के टीके के दुष्परिणाम – होम्योपैथी के सिद्धांत के अनुसार एक ही रोग का कोई स्पेसिफिक (विशिष्ट) उपचार नहीं है। रोगी और औषधि के लक्षण जहां सम होंगे, औषधि वहीं सफल होगी, अन्यथा नहीं। वैकसिनेशन – चेचक का टीका भी जिन रोगियों के लक्षणों के सम होता है, उन्हीं को लाभ पहुंचाता है और जिनके लक्षणों के सम नहीं होगा, उनके शरीर के भीतर जाकर यह विष विविध प्रकार के रोग उत्पन्न कर देता है। ऐसे बहुत से रोगी हैं, जिनका कहना है कि जब से उन्होंने चेचक का टीका लगवाया है, तब से उनका स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ है। इस तरह टीके भिन्नता के कारण भांति-भांति के रोगों का रूप धारण कर लेता है। किसी को अस्थमा (दमा), अपस्मार (मिर्गी), किसी को स्नायु-शूल (सिरदर्द) और किसी को दस्त की शिकायत हो जाती है। कई लोगों को टीका लगवाने के बाद कुछ नहीं होता, इसका कारण है कि वे टीके के विष को जज्ब कर लेते हैं, जिससे नए रोग उठ खड़े होते हैं। डॉ० बर्नेट ने इस प्रकार उत्पन्न रोगों को ‘वैकसिनोसिस’ का नाम दिया है।

वैक्सिनिनम 200 – यदि त्वचा के रोग से पिंड न छूटे, पिछले फोड़े-फुसियां ठीक होते नहीं कि दूसरे होने लगते हैं। यह सिलसिला समाप्त होने में नहीं आता, त्वचा पर भिन्न-भिन्न जगह फुसियां आदि होती रहती हैं, गर्मी में ये लक्षण बढ़ जाते हैं, तब यह औषधि देने की आवश्यकता पड़ती है। यह औषधि सप्ताह में केवल एक बार ही दी जानी चाहिए। चेचक का विष ही इन लक्षणों का कारण हो सकता है।

मैलेंड्रिनम 12x, 30 – टीके के बाद त्वचा खुश्क, खुरदुरी तथा अस्वस्थ हो जाती है, त्वचा पर नीले या लाल दाग पड़ जाते हैं अथवा त्वचा पर पस वाली फुन्सियां होने लगती हैं। यह औषघ सप्ताह में एक बार देनी चाहिए और बीच के दिनों में गन पाउडर 3x चार-चार घंटे के अंतर से देते रहना चाहिए।

मेडोराइनम 200 – यदि रोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहता हो, शरीर से बेहद बदबू आती हो, रोगी को हर समय पंखा झलना पड़ता हो या उसके आगे कूलर आदि चलाना पड़ता हो, तब यह औषधि देनी पड़ती है। इस प्रकार के रोग का कारण भी चेचक के टीके का विष हो सकता है।

थूजा 30 – यह ‘वैकसिनोसिस’ की मुख्य औषधि मानी जाती है। जब यह पता चले कि रोग की शुरूआत टीका लगवाने के बाद से हुई है, तब सर्व-प्रथम इसी औषधि को देना चाहिए। होम्योपैथ रोगी से प्राय: यह प्रश्न करते हैं कि उसने चेचक का टीका कितनी बार लगवाया है। चेचक के टीके के विष का निराकरण थूजा से होता है। थूजा के लक्षण हैं – स्नायु-शूल, कमजोरी, पेट में वायु भर जाना, अर्जीण, एग्जीमा, मस्सों का होना आदि। रोगी को यह औषधि सप्ताह में एक बार चार-पांच सप्ताह तक देते रहना चाहिए।

साइलीशिया 30 – रोगी की त्वचा और अंदर का मांस क्षीण होता जाता है, हड्डियां निकल आती हैं, ठंड बहुत सताती है, फोड़े-फुसियां निकलने लगते हैं, पस वाले फोड़े ही अधिक निकलते हैं, पुराने फोड़ों पर नए फोड़े दिखलाई देते हैं। रोगी को ‘आक्षेप’ भी पड़ जाया करता है। वैकसिनोसिस से उत्पन्न होने वाले इन लक्षणों में यह औषधि परम उपयोगी है।

ग्रैफाइटिस 30 – चेचक के टीके के दुष्परिणामस्वरूप एग्जीमा हो जाना, ऐसा एग्जीमा जिसमें से शहद जैसा गाढ़ा स्राव निकले, रोगी को प्रायः कब्ज की शिकायत रहती है, साथ ही गुदा-प्रदेश के अन्य कष्ट भी सताते हैं।

ट्यूबर्क्युलीनम 200 – यदि रोगी के परिवार के किसी व्यक्ति में तपेदिक के लक्षण रहे हों, तो उसका कारण बार-बार चेचक का टीका लगवाना हो सकता है। ऐसे रोगी को यह औषधि देनी चाहिए।

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