Trilokasan Kriya Method and Benefits In Hindi
त्रिलोकासन क्रिया
शब्दार्थ: त्रिलोक का अर्थ तीन लोक।
विधि
दोनों पैरों के बीच लगभग तीन फ़िट की दूरी रखकर खड़े हो जाएँ। दोनों हाथों को कमर पर इस प्रकार रखें कि अँगूठा कमर के पीछे पीठ की तरफ़ हो। चारों अँगुलियाँ सामने पेट की तरफ़ होनी चाहिए। मेरुदण्ड, ग्रीवा एवं सिर सीधा रखें। दृष्टि सामने की ओर रखें और अंतकुंभक करते हुए धीरे-धीरे ज़मीन की तरफ़ बैठने का प्रयास करें। क्षणिक रुकें, वापस मूल अवस्था में आएँ। धीरे-धीरे अभ्यास के द्वारा अधिक से अधिक ज़मीन के निकट नितंबों को ले जाने का प्रयास करें।
श्वासक्रम: नीचे बैठते समय श्वास छोड़े एवं ऊपर उठते समय श्वास लें।
समय: 4 से 5 बार क्रिया करें।
विशेष: दोनों पैरों के पंजे बाहर की तरफ़ निकले हों। इस अवस्था में कमर पर रखे हुए हाथों की कुहनी पंजों की सीध में हो जाती है।
लाभ
- पिंडली और जंघाएँ मज़बूत होती हैं।
- पैरों का कंपवात मिटता है।
- वायु नाशक है।
- नियमित रूप से यह क्रिया करने पर जंघाओं की अनावश्यक चर्बी कम हो जाती है। जंघाएँ सुडौल बनती हैं।
- उदर प्रदेश लाभान्वित होता है।
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