Uddiyana Bandh Method and Benefits In Hindi

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उड्डियान बंध

उदरे पश्चिमं तानं नाभिर्ध्वं तु कारयेत्।
उड्डीयानं कुरुते यस्मादविश्रान्तं महाखगः॥
उड्डीयानं त्वसौ बन्धौ मृत्युमातंगकेसरी।
समग्राद बन्धनाद्धयेतदुड्डीयानं विशिष्यते॥
उड्डीयाने समभ्यस्ते मुक्तिः स्वाभाविकी भवेत्॥ (घे.सं. 3/12-13)
अर्थ: उड्डियान का अर्थ ऊँचा उड़ना होता है। इस क्रिया में ऊर्जा अधोभाग से उठकर ऊर्ध्वभाग तक प्रवाहित होती है या जब शक्ति ऊर्ध्वमुखी होकर सुषुम्ना में प्रवेश करे, उसे उड्डियान बंध कहते हैं।

विधि

सावधान की स्थिति में खड़े हो जाइए। अब दोनों पैरों के बीच लगभग 1 या डेढ़ फिट का अंतर रखिए। घुटनों को थोड़ा सा मोड़ते हुए आगे की ओर झुकें और हाथों को घुटने के पास जाँघों पर रखें। दीर्घ रेचक कीजिए एवं बहिर्कुम्भक लगाइए। जालंधर बंध में यथासंभव ठुड्डी नीचे करें। अब पूरे उदर स्थान (पेट) को मेरुदण्ड की ओर पीछे (भीतर) खींचे। यही उड्डियान बंध की अंतिम अवस्था है। अनुकूलतानुसार अभ्यास करें। अब क्रमशः उदर को अपनी सामान्य स्थिति में लाएँ और जालंधर बंध को शिथिल करें। पूरक करें एवं सामान्य होने पर यही क्रिया दोहराएँ। इसको शक्तिचालन प्राणायाम भी कहते हैं।

लाभ

दतात्रेय योग के अनुसार इस बंध के अभ्यास से वृद्ध भी युवा हो जाता है। उड्डियान बंध सर्वोत्तम बंध है। हृदय क्षेत्र की मांसपेशियों की अच्छी मालिश होती है। उदर-प्रदेश के अंग कोमल होते हैं जिससे जठराग्नि तीव्र हो जाती है। इस बंध की उपमा शेर के समान की गई है जो कि मृत्युरूपी हाथी पर विजय पा लेता है। चेहरे की झुर्रियों को समाप्त कर तेज बढ़ाता है।
विशेष: 5 से 10 बार आवृत्ति करें। खाली पेट करें।
नोट: इसका अभ्यास बैठकर (पद्मासन, सिद्धासन में) भी किया जाता है।

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