Virasana Method and Benefits In Hindi

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वीरासन

शाब्दिक अर्थ: वीर का अर्थ क्षत्रिय, योद्धा व पराक्रमी है।
विशेष: इसकी कई विधियाँ प्रचलित है।

प्रथम विधि

वज्रासन में बैठे, परंतु नितंबों को । ज़मीन पर स्थिर करें। तलवों को नितंबों के बगल में रखें। इस प्रकार एक तलवे की दूसरे तलवे से दूरी लगभग डेढ़ फ़ीट रहेगी अब हाथों को ज्ञान मुद्रा की अवस्था में घुटनों के ऊपर रखें। पीठ सीधी रखें। गहरी साँस लेते हुए यथाशक्ति रुकें। दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर सिर के ऊपर सीधा तानें। गहरी श्वास-प्रश्वास करें। कुछ देर रुकें अब हाथों को शिथिल करें एवं उनको तलवों पर रखकर आगे झुकें। नासिका के अग्रभाग को घुटनों के बीच रखें। स्वाभाविक रूप से श्वास प्रश्वास करें। अब श्वास छोड़ते हुए उठे और पैरों को आराम दें।

लाभ

  • चूंकि यह वज्रासन का ही एक प्रकार है अतः खाना खाने के बाद भी कर सकते हैं। इससे पाचन-शक्ति यथायोग्य होकर भारीपन मिटता है। (भोजन के बाद करें तो आगे न झुकें) ।
  • घुटनों में आमवात का दर्द और गाऊट दूर करता है।
  • एड़ियों के दर्द से मुक्ति मिलती है।
  • वायु विकारों का नाश होता है।
  • शरीर हल्का एवं चित्त प्रसन्न रहता है।

द्वितीय विधि

दूसरी अवस्था में वज्रासन में बैठे। अब एक पैर मोड़कर (घुटना ऊपर की तरफ़ और पादमूल ज़मीन को स्पर्श करे) दूसरे पैर के घुटने के समीप रखें। हथेलियों को परस्पर मिलाते हुए सिर के ऊपर सीधा ताने या चित्रानुसार रखें। स्वाभाविक श्वास-प्रश्वास चलने दें। अब इसी आसन को पैर बदलकर करें। कम से कम 8-10 सेकंड इसी अवस्था में रुकें। इस क्रिया को 4 से 6 बार करें।

ध्यान

  • प्रथम प्रकार के आसन की स्थिति में स्वाधिष्ठान चक्र पर।
  • द्वितीय अवस्था में मूलाधार चक्र पर।

लाभ

  • मूलाधार में ध्यान करते हुए श्वास नियंत्रित करें। यह श्वास को लंबे समय तक के लिए कुंभक की स्थिति में लाता है।
  • समस्त चक्रों का लाभ मिलता है।
  • एकाग्रता बढ़ती है।
  • तंत्रिका तंत्र को संवेदनशील बनाता है।
  • यह यकृत, अमाश्य, वृक्क एवं प्रजनन अंगों को सुचारू करता है।

तृतीय विधि

एक पैर से वज्रासन करें और दूसरे पैर को अर्धपद्मासन की तरह वज्रासन वाले पैर की जंघा पर रखें। प्रथम अभ्यासी हाथों का सहारा लेकर घुटने के बल उठकर स्थिर हो और संतुलन बनाते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर हाथ जोड़ने के तरीके को अपनाएँ। कुछ देर रुकें मूल अवस्था में आयें व पैर बदलकर करें। दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर या सामने रखें।
श्वास: उठते समय श्वास रोकें। आसन लग जाने पर सामान्य श्वास-प्रश्वास करें। वापस आते समय श्वास छोड़ें।
लाभ: उदर प्रदेश को लाभ। आलस्य समाप्त होता है। दृष्टि स्थिर होती है। आँखों की रोशनी बढ़ती है।
नोट: कुछ योग शिक्षक पहली विधि अनुसार कराते हैं एवं द्वितीय विधि घेरण्ड संहितानुसार है। कुछ योगाचार्यों ने प्रथम विधि का नाम ब्रह्मचर्य आसन रखा है। इस आसन के और भी प्रकार हैं।

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